KANAK
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२० लाख दिनार ले गया
लूटकर गजनवी
घंटियाँ बजाते रहे
तमाशा देखने वाले
तकलीफ नहीं देते जो
जो मन के लालची हैं
नाशूर हैं जख्मों पर
रोटियां सेकने वाले
आज भी होता जुल्म
सरेआम देखते हैं
काला चश्माँ पहनते हैं
हुकूम अंधी नज़र वाले
हम बचा भी नहीं सकते
दामन अपना अपने घर में
कुछ कफ़न बांधते हैं
बंदूकों से खेलने वाले
जमा है खून सपूतों का
आज भी हिमालय पर
वो गुमनाम ही मर जाते
तिरंगा थामने वाले
प्रहरी आज बैठे हैं बन
केशरी गुफाओं पर
शेर सा दहाड़ते है
रात भर जागने वाले
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